(Village Of IAS Officers in India) अफसर बनने का सपना बड़ी मेहनत और लगन से पूरा होता है. जब किसी के घर में कोई आईएएस ऑफिसर बन जाता है तो उसकी खुशी बयां भी नहीं की जा सकती क्योंकि उसके मायने ही अलग होते हैं. यदि कहीं एक ही जगह से 47 आईएएस ऑफिसर बने तो आपको जरूर आश्चर्य होगा. लेकिन यह बात किसी परिवार की नहीं है बल्कि ऐसे गांव की है जिसमें केवल 75 घर है और इस छोटे से गांव में 47 आईएस ऑफिसर है. जिसकी वजह से यह गांव अफसरों का गांव कहे जाने लगा. जी हां, इस गांव में होशियार और होनहार लोगों की कमी नहीं है. उनकी मेहनत, लगन और प्रतिष्ठा उन्हें उनका मुकाम हासिल करने में सहायता करती है. इनकी तैयारी भी कुछ अलग ही है. चलिए हम आपको बता देते हैं कि कौन सा है यह गांव और क्या है इसकी खासियत…
यह गांव उत्तर प्रदेश का जौनपुर जिले में स्थित है, जिसका नाम माधोपट्टी है. इस गांव में अफसरों की कमी नहीं है. 75 घरों के इस गांव में 40 से ज्यादा आईएएस ऑफिसर है जो अलग-अलग राज्य में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

माधोपट्टी गांव का पहला आईएएस ऑफिसर
दरअसल जब हमारे बुजुर्ग कामयाबी की राह पकड़ लेते हैं. तो अपने बच्चों को भी कामयाबी की राह ले जाते हैं. इस गांव में भी कुछ ऐसा ही है. 1914 में पहली बार मुस्तफा हुसैन पीसीएस के लिए चुने गए. इसके बाद इस गांव में कामयाबी ने कदम चुमना शुरू कर दिया और 1952 में इंदु प्रकाश सिंह का आईएएस में सिलेक्शन हुआ. यही कारण है कि यहां के युवक इसी राह पर आगे बढ़ते चले गए.
माधोपट्टी गाँव को इसलिए है कहा जाता है अफसरों का गांव….
कम संख्या वाले मध्य पट्टी गांव में लोग अपने बुजुर्गों के दिखाए हुए रास्ते पर चलते हैं. सबसे पहले मुस्तफा हुसैन के कमिश्नर बनने के बाद लोगों ने अपने गांव की प्रतिष्ठा को बनाए रखा और गांव के हर युवक ने सच्ची मेहनत और लगन से तैयारी शुरू की. उनकी मेहनत का फल इस कदर मिलना शुरू हुआ आज 1 से बढ़कर अफसरों की वह संख्या 47 हो चुकी है. जो इस गांव के लिए बड़े गर्व की बात है.

इस तरह से करते हैं तैयारी
इनकी तैयारी भी कुछ खास और अनोखी होती हैं क्योंकि यह मेहनत दिन और रात देख कर नहीं करते बल्कि हर वक्त आंखों में अफसर बनने का सपना व्याप्त रहता है. हर रोज हर खबर से अपडेट रहना इस गांव में हर बच्चे की आदत है. यही कारण है कि इन्हें टेस्ट देने में कोई दिक्कत नहीं होती और टेस्ट आराम से क्वालीफाई कर लेते है. जो आईएस ऑफिसर पहले बन चुके हैं उनसे प्रेरित होकर इस गांव के युवक उन से शिक्षा लेते हैं और पूरा प्रयास कर हर पड़ाव को पार कर देते हैं.
गांव की महिलाएं अफसर की लिस्ट में सबसे आगे
इस गांव की महिलाएं पुरुष से कभी पीछे नहीं रही. यही कारण है कि इस गांव की लोग मिसाल देते हैं. इस गांव में 1980 में आशा सिंह, 1982 में उषा सिंह और 1994 में गांव के एक पुरुष अमिताभ आईपीएस बनें जिसके बाद उनकी पत्नी ने भी अफसर बनने के लिए मेहनत की और आईपीएस में उनका सिलेक्शन हो गया. इस गांव की लड़कियां कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं और उन लाखों महिलाओं के लिए एक उदाहरण है जो अफसर बनना चाहती हैं.
दोस्तों यह माधोपट्टी गांव था. जिसकी कामयाबी की लोग मिसाल देने लगे. यदि आप भी अफसर बनना चाहते हैं तो इस गांव से सीख लीजिए और तैयारी को हौसले और विश्वास के साथ पूरी कीजिए. कामयाबी आपके भी ऐसे ही कदम चूमेगी जैसे आज उत्तर प्रदेश के इस माधोपट्टी गांव की चूम रही है.